वोह दिन कितने अच्छे थे,जब हम छोटे बच्चे थे,
सोच के सारे कच्चे थे,पर दिल के कितने "सच्चे" थे!
छोटीसी बात पे लड़ते थे,लेकिन फिर भी "साथ" खेलते थे,
खिलोनेकी गुडिया हसती थी,और चाँद में परिया बसती थी,
वोह दिन कितने अच्छे थे,जब हम छोटे बच्चे थे!
"साथ" घुमते फिरते थे,और मिल-बाटके खाते थे,
कभी गिरते और संभलते थे,लेकिन फिर भी "साथ" चलते थे,
वोह दिन कितने अच्छे थे,जब हम छोटे बच्चे थे!
कितने सारे सपने थे,और "सारे" लोग अपने थे,
किसीसे कभी गिले न थे,गम इतने मिले न थे,
वोह दिन कितने अच्छे थे,जब हम छोटे बच्चे थे!
काश कही से जादू की छड़ी मिल जाए,हम सब फिर से बच्चे बन जाए,
बचपन के प्यार में खो जाए,"मिल-जुल" कर रेह पाए,
वोह दिन कितने अच्छे थे,जब हम छोटे बच्चे थे!
वोह दिन कितने अच्छे थे,जब हम छोटे बच्चे थे,
सोच के सारे कच्चे थे,पर दिल के सारे
No comments:
Post a Comment